दिल्ली नगर निगम के नतीजे आने लगे हैं. ताजा जानकारी के अनुसार, दिल्ली नगर निगम की कुल 250 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी 102 सीटों पर और आम आदमी पार्टी 135 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है. कांग्रेस 9 सीटों पर आगे है. सीलमपुर सीट से निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की है. मलकागंज वार्ड में मतदान टाई हो गया है. यहां बीजेपी और आप को बराबर वोट मिले हैं.
एमसीडी नतीजों को लेकर आम आदमी पार्टी खेमें में खासी उत्साह देखने को मिल रहा है. आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा ने कहा कि दिल्ली की जनता ने जता दिया है कि दिल्लीवासी काम करने वालों को वोट देते हैं ना कि झूठे वादे करने वालों को.
घोषित नतीजों के अनुसार, जामा मस्जिद सीट से आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार सुल्ताना आबाद ने जीत दर्ज की है. सुल्ताना को 11,216 वोट मिले. यहां बीजेपी उम्मीदवार आशा वर्मा को कुल 847 और कांग्रेस की शाहीन को 3793 वोट मिले हैं. लाजपत नगर से बीजेपी के कुंवर अर्जुन पाल सिंह मारवा ने जीत हासिल की है. रंजीत नगर से आम आदमी पार्टी के अंकुश नारंग जीत गए हैं. शकरपुर में कमल का फूल एक बार फिर खिल गया है.
दिल्ली नगर निगम में पिछल 15 वर्षों से भारतीय जनता पार्टी काबिज है. लेकिन इस बार के चुनावों में यह समीकरण पलटता नजर आ रहा है. आम आदमी पार्टी ने जहां दिल्ली में कूड़े के ढेर, नगर निगम कर्मचारियों की सुविधाएं और अन्य बातों को मुद्दा बनाया था, वहीं बीजेपी ने तीन बार से शासन में किए गए कामों को जनता के सामने रखा.
दिल्ली नगर निगम चुनाव के नतीजे आने लगे हैं और आम आदमी पार्टी एमसीजी पर कब्जा करती नजर आ रही है. दिल्ली एमसीडी चुनाव के नतीजों में अब तक के जो रुझान सामने आए हैं, उससे आम आदमी पार्टी को बहुमत मिलता दिख रहा है, जबकि भाजपा 15 सालों की बादशाहत खोती नजर आ रही है. हालांकि, दिल्ली एमसीडी चुनाव में भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच तगड़ी फाइट देखने को मिली. ऐसे कई मौके आए, जब रुझानों में भाजपा भी बहुमत के जादुई आंकड़े को पार करती दिखी थी, मगर अब एमसीडी पर आप का राज होता दिख रहा है.
यही वजह है कि आज सुबह रुझान आने के बाद भाजपा आलाकमान ने अपने दिल्ली भाजपा के नेताओं को निर्दलीय और कांग्रेस के विजयी पार्षदों के संपर्क में रहने को कहा था. इसकी वजह यह थी कि अगर भाजपा कम अंतर से बहुमत से दूर रहती तो वह कांग्रेस और अन्य पार्षदों को अपने पाले में मिलाकर एमसीडी की कुर्सी अपने कब्जे में बरकरार रख सकती थी. मगर अब तक के जो नतीजे हैं, उससे ऐसा होता दिख नहीं रहा है.
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